अगरु का परिचय (Introduction of Agaru)
क्या आप जानते हैं कि अगरु (agarwood in hindi) एक बहुत ही उत्तम जड़ी-बूटी
है और आप अगरु के इस्तेमाल से बीमारियों को ठीक कर सकते हैं- प्राचीन काल से ही लोग भारत
में अगरु का उपयोग कर रहे हैं। अगरु (agaru)को अगर भी कहा जाता है। इसकी
लकड़ी से राल यानी गोंद की तरह का कोमल व सुगन्धित पदार्थ निकलता है, जो अगरबत्ती बनाने व सुगंधित
उबटन की तरह शरीर पर मलने के काम आता है। इसके अलावा अगरु (agaru)का उपयोग बीमारियों के इलाज
के लिए भी किया जाता है।अगरु (agarwood in hindi) कड़वा और तीखा, पचने में हल्का और चिकना होता
है। यह कफ तथा वात को शान्त करने
वाला और पित्त को बढ़ाने वाला होता है। अगरु (agarwood)सुगंधित, लेप लगाने पर शीतल, हृदय के लिए लाभकारी, भोजन के प्रति रुचि बढ़ाने वाला और मोटापा कम करता है। यह त्वचा
के रंग को निखारता है। आंख तथा कान के रोगों, कुष्ठ, हिचकी, उल्टी, श्वास फूलना, गुप्त रोगों, पीलिया, खुजली, फुन्सियाँ तथा विष-विकारों की चिकित्सा
में इसका औषधीय प्रयोग (aquilaria
agallocha medicinal uses) किया जाता है। अगुरु के सार का तेल भी समान गुणों वाला ही होता तथा
पुराने घावों को ठीक करता है। पेट के कीड़े और कुष्ठ रोग को ठीक करता है।
अगरु क्या है (What is Agaru?)
अगरु वृक्ष (agaru tree) विशाल तथा सदा हरा-भरा रहने वाला होता है।
कृष्णागुरु को पानी में डालने पर (लकड़ी भारी होने के कारण) डूब जाता है। अगरु की
अनेक जातियां होती हैं।
(1) कृष्णागुरु
(2) काष्ठागुरु
(3) दाहागुरु
(4) मंगल्यागुरु
सभी प्रजातियों में कृष्णागुरु सबसे अच्छा माना जाता है। रोगों की
चिकित्सा में इसका प्रयोग किया जाता है।
अगुरु की लकड़ी (agarwood in hindi) अंदर से एस्कोमाईसीटस मोल्ड (Ascomycetous
mold), फेओएक्रीमोनीयम
पेरासाईटीका (Phaeoacremonium
parasitica) नामक
डीमेशीएशस (गहरे वर्ण के कोशिकायुक्त-dark walled) कवक यानी सूक्ष्मजीवों से संक्रमित
होती है। इन कवकों से बचाव के लिए अगरु के वृक्ष से एक विशेष प्रकार का द्रव्य
निकलता है। अगरु (agaru) की त्वग्स्थूलता (Tylosis) रोग से असंक्रमित लकड़ी हल्के रंग की
और संक्रमित लकड़ी इस द्रव्य के कारण गहरे-भूरे अथवा काले रंग की होती है।
अनेक
भाषाओं में अगरु के नाम (Agaru
Called in Different Languages)
प्राचीन समय में यहूदी धर्म-ग्रन्थों में यह अलहोट नाम से प्रसिद्ध है। इसके अतिरिक्त
ग्रीक व रोमन में इसे अगेलोकन तथा प्राचीन अरब में अधलूखी एवं ऊद हिन्दी नाम से इनका उल्लेख मिलता है।
अगरु (aquilaria
agallocha) का
वानस्पतिक नाम ऐक्वीलेरिया मैलाकैन्सिस (Latin – Aquilaria malaccensis Lam., Syn –
Aquilaria agallocha Roxb. Ex DC.) है। यह थाइमीलिएसी (Thymelaeaceae) कुल का पौधा है। विभिन्न भाषाओं में इसके नाम ये हैं –
Agaru (agar agar powder indian name) in –
·
Hindi
(agarwood in hindi) – अगर, ऊद
·
English – Eagle wood (ईगल वुड),
अगर वुड (Agar wood), एलो वुड
(Aloe
wood), मलायन ईगल वुड (Malayan eagle
wood), अगल्लोचम (Agallochum)
·
Tamil
(agar agar powder in tamil) – अग्गालीचंदनम (Aggalichandanam)
·
Sanskrit –
अगुरु, कृमिजग्धम्, प्रवरम्, लोहम्, राजार्हम्, योगराज, वंशिक, कृमिजम्, जोङ्गक, अनार्यकम्
·
Assamese
– ससि (Sasi)
·
Urdu
– अगर (Agar)
·
Kannada
– अगरु (Agaru)
·
Gujarati
– अगर (Agar)
·
Telugu
(pancha lohas in telugu) – अगरु (Agru)
·
Bengali
– अगरु (Agaru), अग्गर (Aggar), उगर (Ugar)
·
Punjabi
– पंवार (Panvar), चकुंदा (Chakunda)
·
Marathi
– अगर (Agar)
·
Malayalam
(agar powder in malayalam) – कायागहरू (Kayagahru)
·
Arabic
– उद-ए-गर्की (Ood-e-garqi), अगरे
हिन्दी (Agare hindi)
·
Persian
– अगर (Agar), उद-ए-हिन्दी (Ood-e-hindi)
अगरु के
फायदे (Agaru
Benefits and Uses)
अगरु (aquilaria
agallocha) का
औषधीय प्रयोग,
प्रयोग
की मात्रा और विधियां ये हैंः-
सिरदर्द दूर करता है अगरु का लेप (Agaru Benefits in Reliefs
from Headache) अगुरु की लकड़ी को चन्दन की तरह घिसकर उसमें थोड़ा कपूर
मिलाकर मस्तिष्क पर लेप करने से सिर दर्द ठीक होता है।
अगरु के सेवन से दमा और खाँसी का इलाज (Agaru Cures Cough &
Bronchitis)
1-3 ग्राम अगुरु (agar agar powder) के चूर्ण में थोड़ा-सा सोंठ
मिलाकर मधु के साथ सेवन करने से कफ के कारण होने वाली खाँसी ठीक होती है। अगुरु के
चूर्ण (agar
powder ) तथा
कपूर को पीसकर वक्ष स्थल पर लेप करने से श्वसनतंत्र-नलिका की सूजन ठीक (agarwood
benefits) होती
है।
पान के पत्ते में दो बूँद अगुरु (aquilaria agallocha) के तेल को डालकर सेवन करने से
सांस फूलने के रोग में शीघ्र लाभ होता है। यह गाढ़े बलगम को पतला करने
में भी मदद करता है, जिससे फेफड़ों को साफ़ होने
में मदद मिलती है।
पेट के रोगों में लाभकारी अगरु का प्रयोग (Benefits of Agaru in Stomach Problems)
सेंधा नमक के साथ अगरु चूर्ण (agar powder) का सेवन करने से पेट और लीवर
सक्रिय होते हैं और भूख बढ़ती है। यह लीवर को ताकत देता है और चयापचय प्रक्रिया को
बढ़ाता करता है। अगुरु की लकड़ी को लगभग 10 ग्राम लेकर उसका काढ़ा बना
लें। इसे 20-40 मिली मात्रा में नियमित सेवन
करने से पेट के कैंसर में लाभ (aquilaria agallocha medicinal uses) होता है।
अगरु के प्रयोग से उल्टी का उपचार (Agaru Stops Vomiting)
1-2 ग्राम अगुरु की लकड़ी के चूर्ण में शहद मिलाकर सेवन करने से उल्टी, अपच की समस्या एवं भूख की कमी
ठीक होती हैं।
बवासीर का इलाज अगरू चूर्ण (Benefits of Agar Powder in Piles Treatment)
अगरु चूर्ण (agar powder) को घी में पकाकर शीतल कर लें।
इसमें मिश्री मिलाकर सेवन करने से खूनी बवासीर में लाभ (agarwood benefits)होता है।
डायबिटीज में फायदेमंद अगरु का प्रयोग (Agaru is Beneficial in Diabetes)
पाठा का पञ्चाङ्ग, अगुरु की लकड़ी तथा हल्दी को समान भाग में लेकर इनका काढ़ा बना
लें। इस काढ़े को 10-20 मिली मात्रा में सेवन करने से डायबिटीज में लाभ (agarwood benefits)होता है।
सूतिका रोग में लाभकारी है अगरु (Benefits of Agaru in Puerperal Diseases)
प्रसव के पहले और बाद में अगुरु की लकड़ी का काढ़ा बनाकर 20-30 मिली की मात्रा में प्रयोग
करें। इससे प्रसव होने के बाद के प्रसूति स्त्री कके रोगों में लाभ होता है। इसमें
अजवायन तथा सोंठ मिलाने से और जल्दी लाभ (agarwood benefits) प्राप्त होता है।
जोड़ों के दर्द में फायदेमंद अगरु (Agaru Benefits in Arthritis Treatment) अगरु (agarwood) वात विकार को कम करता है। अगुरु की लकड़ी या पत्तों को
पीसकर लेप करें। इससे गठिया, आमवात, जोड़ों की सूजन, लकवा आदि रोगों में लाभ होता है।
चर्म रोगों में लाभकारी है अगरू का लेप (Benefits of Agaru to Cure Skin Problems)
अगरु (agarwood)की छाल के चूर्ण (2 ग्राम) को पांच ग्राम गाय के घी
के साथ लेने से कुष्ठ,
खुजली आदि चर्म विकारों में लाभ
होता है। यह पित्ती से जुड़े खुजली वाले फोड़े और खुजली को भी कम (aquilaria
agallocha medicinal uses) कर देता है।
अगरु के इस्तेमाल से सूजन का इलाज (Agaru Uses in Reducing Swelling )
चोरक तथा अगुरु (agarwood)को पीसकर लेप करने से कफ के कारण होने वाली सूजन (agarwood benefits)ठीक होती है।
बुखार उतारने के लिए करें अगरू का सेवन (Uses of Agaru in Fighting with Fever) अगरु (agarwood)ठण्ड व थकान को कम करता हैं। यह बुखार को कम करने में
मददगार हैं और शरीर को ताकत देता है। बुखार में इसका काढ़ा पीना लाभदायक होता हैं। अगुरु की लकड़ी
डाल कर रखे जल का सेवन करने से बुखार में लगने वाली प्यास शान्त होती है। अगरु (agarwood)को गिलोय, अश्वगंधा और शतावरी के साथ लें। इससे बुखार के बाद होने
वाली थकान और शारीरिक कमजोरी में फायदा (agarwood
benefits )होता है।
शारीरिक शक्ति और वीर्यवर्धक है अगुरु (Use of Agaru for Good Health and Nourishment)
2-5 ग्राम अगुरु के काढ़े को एक लोहे के बर्तन के भीतर लेप कर, रात भर छोड़ दें। सुबह 375 मिली जल में इस अगुरु लेप को
घोल कर पीना चाहिए। ऐसे ही रोज एक वर्ष तक नियमित सेवन करने से बुढ़ापे के कारण
होने वाली बीमारियों से मुक्ति मिलती है तथा लंबी तथा स्वस्थ आयु की प्राप्ति होती
है।
2-5 ग्राम अगुरु के चूर्ण को दूध के साथ रोज एक साल तक पीने से बल, आयुष्य आदि रसायन गुणों की
प्राप्ति होती है। 1-2 बूँद अगुरु तेल का नियमित
सेवन करने से बल की वृद्धि होती है।
हिचकी रोकने में अगरू फायदेमंद ( Agaru Beneficial to Treat Hiccup)
हिचकी आने का मुख्य कारण होता है वात दोष का असंतुलित हो जाना।
अगरु में वात शामक गुण पाए जाते है इसलिए यह इस रोग को रोकने में मदद कर सकता है।
शरीर के सुन्न पड़ जाने के इलाज में अगरू फायदेमंद ( Agaru Beneficial to
Treat Body Numbness)
शरीर के सुन्न पड़ जाने का मुख्य कारण वात दोष का बढ़ जाना होता है।
ऐसे में अगरु के वात शामक गुण शरीर के सुन्नपन को दूर करने में मदद करता है।
चेहरे का दाग ठीक करने में अगरू का उपयोग लाभकारी (Agaru Beneficial to Get
Relief from the Dark Spot of Face)
अगरु में त्वगदोषहर गुण होने के कारण यह चेहरे के दाग धब्बों को कम
करने में भी मदद करते हैं।
जांघ का सुन्न हो जाने का इलाज करे अगरू का औषधीय गुण (Agaru Beneficial to Treat
Thigh Numbness)
जाँघ का सुन्न होना जाना एक ऐसी अवस्था है जो वात दोष के असंतुलित होने के
कारण होती है अगरु में वात शामक गुण होने के कारण यह इस अवस्था से राहत दिलाने में
उपयोगी हो सकती है।
सेक्सुअल पॉवर बढ़ाता है अगरू का तेल (Agaru Enhances Sexual Power)
पान के पत्ते में 1-2 बूंद पुराने अगुरु तेल (Agaru
Oil) को
डालकर मुंह में रखने से सेक्सुअल पॉवर या सेक्स की ताकत बढ़ती है।
जीव-जन्तुओं के विष में है कारगर (Benefits of Agaru Powder
in Poisonous Insect Biting)
अगुरु की लकड़ी को पीसकर लेप करें। इससे सांप, बिच्छु आदि विषैले जीवों
द्वारा काटे जाने पर चढ़ने वाले विष उतर जाता है। इससे दर्द आदि विषाक्त प्रभाव
खत्म होतेा है।
अगरु के
सेवन की मात्रा (How
Much to Consume Agaru?)
तेल – 1-5 बूँद
चूर्ण – 0.5-3 ग्राम
सार 1-2 ग्राम
काढ़ा – 10-40 मि.ली.
चिकित्सक के परामर्शानुसार सम्पर्क करें।
अगरु के
सेवन का तरीका (How to
Use Agaru?)
कवक यानी सूक्ष्मजीवियों से
संक्रमित तने के अंदर की लकड़ी।
अगरु
कहां पाया या उगाया जाता है (Where
is Agaru Found or Grown?)
भारत में अगरु (agarwood)उत्तर-पूर्वी हिमालय, मेघालय, मणिपुर, नागालैण्ड, त्रिपुरा के पर्वतीय क्षेत्र, खासिया पहाड़ियों एवं
पश्चिमी बंगाल में लगभग 500 मीटर की ऊंचाई तक प्राप्त
होता है। असम में प्राचीन काल से ही अगरु (agarwood)की खेती होती है। इसके
अतिरिक्त अगुरु का वृक्ष (agaru
tree) मलेशिया
तथा फिलीपीन्स में भी मिलता है।
अगरवुड (Agarwood)
की खासियत-एक लकड़ी की कीमत क्या हो सकती है, जरा सोचिए। अगर किसी लकड़ी की कीमत सोने
या हीरे सी महंगी हो तो चौंकना लाजमी है। ऐसी ही एक लकड़ी का नाम है अगरवुड (Agarwood)। इस लकड़ी को
अलौसवुड, ईगलवुड के नाम से भी
जाना जाता है। मजे की बात ये है कि यह लकड़ी जापान, अरब, चीन,
दक्षिण-पूर्व एशियाई देश के साथ-साथ भारत में भी पाई जाती है। यह दुनिया की सबसे दुर्लभ और
सबसे महंगी लकड़ी है। एक किलो अगरवुड की कीमत करीब 73 लाख
रुपए तक है।
इस लकड़ी को ईश्वर की लकड़ी और ईश्वरीय
लकड़ी के नाम से भी जाना जाता है। अब अगर बात करें इस लकड़ी की कीमत तो इसे पाने
के लिए करीब 73 लाख रुपए खर्च करने
पड़ सकते हैं। उधर, अगर हम भारत में एक
ग्राम हीरे की बात करें तो इसकी कीमत 3,25,000
है।
वहीं दस ग्राम सोने की कीमत 47,695 रुपए है।जापान में इस
लकड़ी को क्यारा और क्यानम के नाम से जाना जाता है। अगरवुड से इत्र और अन्य
सुगंधित वस्तुएं बनाई जाती हैं। लकड़ी के सडऩे के बाद उसके अवशेषों का उपयोग इत्र
के उत्पादन में किया जाता है। अगरवुड से निकाले गए राल से ऊद का तेल भी निकाला
जाता है। ऊद एक बेशकीमती तेल है जिसका इस्तेमाल सिर्फ परफ्यूम बनाने में किया जाता
है। इस पेड़ की यही खासियत इसके अस्तित्व के लिए परेशानी का सबब बन गई है। कई
खूबियों वाले इस पेड़ की जमकर तस्करी भी की गई है। यही कारण है कि अगरवुड चीन, जापान और हांगकांग जैसे देशों में इसकी
अवैध कटाई और तस्करी बड़े पैमाने पर की जा रही है।अगरवुड खेती की कैसे करे Agarwood
Farming Cultivation
अगरवुड
खेती की खेती कैसे करे Agarwood Farming Cultivation
Agarwood Cultivation India
Agarwood plantation
method :- अगरवुड को वुड्स ऑफ गॉड कहा जाता है। अगरवुड का वैज्ञानिक नाम
एक्वीलेरिया है और एक्विलारिया का वैज्ञानिक नाम रालस हर्टवुड है। यह दक्षिण पूर्व
एशिया का मूल निवासी है। अगरवुड एक्विलरिया की संक्रमित लकड़ी है। यह एक जंगल का
पेड़ है और लगभग 40 मीटर और 80 सेंटीमीटर चौड़ा की ऊंचाई तक पहुंचता है। ये जंगली पेड़ कुछ सांचों
या परजीवी कवक से संक्रमित हो जाते हैं जिन्हें फियालोफोरा पैरासिटिका कहा जाता है
और इस हमले की अप्रभावित प्रतिक्रिया के कारण हर्टवुड में अगरवुड का उत्पादन करना
शुरू कर देते हैं।
यह एक गंधहीन पूर्व संक्रमण है।
जैसे-जैसे संक्रमण बढ़ता है, यह
हर्टवुड में गहरे रंग का राल देता है यह एम्बेडेड लकड़ी मूल्यवान है यह बहुत
सुगंध देता है और इस प्रकार धूप और इत्र में प्रयोग किया जाता है। ये सुगंधित गुण
प्रजातियों, भौगोलिक स्थिति, ट्रंक, शाखा, मूल उत्पत्ति, संक्रमण
के बाद से लिया गया समय और कटाई और प्रसंस्करण के तरीकों से प्रभावित होते हैं।
लगभग 10% जंगली परिपक्व एक्विलरिया पेड़
प्राकृतिक रूप से राल का उत्पादन कर सकते हैं।
अगरवुड पौधे की
विशेषताएं Features of Agarwood Plant
- अगरवुड, अलोववुड
या घ्रुवुड छोटी नक्काशी, धूप और इत्र में इस्तेमाल की जाने वाली
गहरे रंग की राल वाली सुगंधित लकड़ी है।
- वन्य संसाधनों की
कमी के कारण अगरवुड की लागत अधिक है।
- अगरवुड की गंध कुछ
या कोई प्राकृतिक अनुरूपता के साथ सुखद और जटिल है।
अगरवुड देश में कहां-कहां पाए जाते
हैं Agarwood
Cultivation India Hindi
अगर मूल रूप से
एशिया महाद्वीप के पेड़ हैं. भारत के अलावा ये चीन, मलाया, लाओस, कंबोडिया, वियतनाम, सिंगापुर, मलक्का, म्यांमार, सुमात्रा, भूटान, बांग्लादेश, जावा आदि में भी
पाए जाते हैं. भारत की बात करें तो देश में ये पेड़ उत्तर भारत के पूर्वी हिमालय
के आसपास के भागों त्रिपुरा, नागालैंड, असम, मणिपुर और केरल में
पाए जाते हैं. इनमें सिलहट में पाया जाने वाला अगर सर्वोत्तम माना जाता है।
अगरवुड की किस्में Agarwood Varieties
एक्विलरिया की
अधिकांश प्रजातियां प्राकृतिक या कृत्रिम रूप से प्रभावित होने पर अगरवुड में बदल
जाती हैं। ये प्रजातियां पूरी दुनिया में अलग-अलग जगहों पर पाई जाती हैं। उत्पादित
अगरवुड तेल के गुण और विशेषताएं एक दूसरे से स्वतंत्र हैं।
- aquilariaबेल्लोनी
(कंबोडिया, इंडोचाइना, थाईलैंड)
- एक्विलरिया बनेंसिस (वियतनाम)
- एक्विलरिया बेकेरियाना (दक्षिण पूर्वी एशिया)
- aquilariaब्राच्यन्था (दक्षिण पूर्व एशिया – फिलीपींस)
- एक्विलारिया सिट्रिनिकार्पा (दक्षिणपूर्व एशिया – फिलीपींस
(मिंडानाओ))
- एक्विलरिया क्रासना (थाईलैंड, कंबोडिया, इंडोचीन, वियतनाम, लाओ पीडीआर, भूटान)
- aquilaria कमिंगियाना (इंडोनेशिया)
- एक्विलरिया डीसमकोस्टाटा (फिलीपींस)
- एक्विलरिया फाइलेरिया (इंडोनेशिया)
- एक्विलरिया हिरता (मलेशिया, इंडोनेशिया)
- एक्विलरिया खासियाना (भारत)
- एक्विलरिया मैलाकेंसिस (लाओ पीडीआर, मलेशिया, थाईलैंड, इंडोनेशिया, भूटान, बर्मा)
- एक्विलरिया माइक्रोकार्पा (इंडोनेशिया, बोर्नियो)
- एक्विलरिया परविफोलिया (फिलीपींस (लुजोन))
- एक्विलरिया रोस्ट्रेट (मलेशिया)
- एक्विलरिया रगोज (पापुआ न्यू गिनी)
- एक्वीलेरिया साइनेंसिस (चीन)
- एक्विलरिया सबिन्टेग्रा (थाईलैंड)
- एक्विलरिया urdanetensis
(फिलीपींस)
- एक्विलरिया युन्नानेंसिस (चीन)।
अगरवुड की खेती के लिए मिट्टी और
जलवायु की स्थिति
Soil And
Climatic Conditions For Agarwood Farming:अगरवुड आमतौर पर
समुद्र तल से 750 मीटर से अधिक ऊंचाई वाले पहाड़ी क्षेत्रों में अच्छी तरह से उगता
है। इसे पीली, लाल
पोडज़ोलिक, मिट्टी
की रेतीली मिट्टी में उगाया गया है। तापमान औसतन 20 C से 33 C तक होता है। इसे 2,000 से 4,000 मिमी के बीच वर्षा
पर उगाया जा सकता है। मिट्टी के घोल की मोटाई 50 सेमी से अधिक। इन
पेड़ों को विभिन्न जंगलों और पारिस्थितिकी तंत्र में अच्छी तरह से उगाया जा सकता
है।
मिट्टी की
विशेषताओं और उर्वरता से प्रभावित पर्यावरणीय परिस्थितियां। पौधे का तापमान 20-33 डिग्री सेल्सियस, सापेक्षिक आर्द्रता
77-85% और प्रकाश की तीव्रता 56-75% तक बढ़ सकती है। इस
बीच, समुद्र
तल से 200 मीटर ऊपर, स्थितियां
थोड़ी भिन्न होती हैं।
अगरवुड का वृक्षारोपण Agarwood Plantation:
Agarwood वृक्षारोपण कई लोगों द्वारा Artificial
Inoculation की
तकनीकों का उपयोग करके किया जा सकता है। इन तकनीकों के साथ, कोई भी दशकों
(प्राकृतिक साधनों से) की तुलना में कम समय में अगरवुड प्राप्त कर सकता है। अच्छे
परिणाम प्राप्त करने के लिए अच्छी गुणवत्ता वाले पौधे का चयन किया जा सकता है।
अगरवुड की खेती के लिए एक्विलरिया
अंकुर Agarwood
Cultivation India Hindi
Aquilaria Seedlings :- अगरवुड की आवश्यकता
को पूरा करने के लिए मांग को पूरा करने के लिए अधिक से अधिक पेड़ लगाना बहुत जरूरी
है। वर्तमान में 20 प्रतिशत अगरवुड का उत्पादन होता है। निजी नर्सरी के माध्यम से
सफलतापूर्वक खेती की जा सकती है। एक्वीलेरिया युक्त बीज की पहचान करना खेती का
पहला चरण है। propagation की प्रक्रिया बीज परिपक्वता के चरण में होती है।
प्रस्फुटन के तुरंत बाद propagation किया जा सकता है |
अगरवुड की खेती के लिए खेती की सीमा
Agarwood Farming Cultivation Range Of Cultivation :-एक्विलरिया को
विभिन्न मिट्टी, विभिन्न
परिस्थितियों और सीमांत भूमि में उगाया जा सकता है। इसके बारे में दिलचस्प और
महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि इसकी खेती खेत में, घर के बगीचे में या
अन्य पेड़ों के साथ अंतर-फसल में की जा सकती है।
अगरवुड की खेती में भूमि की तैयारी और
रोपण Agarwood
Cultivation India Hindi
संभावित
प्रजातियों का चयन करने के लिए पारिस्थितिक स्थितियों का आकलन करना महत्वपूर्ण है
जो जीवित और उगाई जा सकती हैं। कई रोपण 3 से 4 साल के बाद रुके
हुए पानी के कारण मर रहे हैं लेकिन मिट्टी और जलवायु के कारण नहीं। मृत्यु दर को
कम करने के लिए ढलान वाली भूमि में वृक्षारोपण किया जा सकता है। रोपाई को 60-90 सेंटीमीटर की ऊंचाई
प्राप्त करने के बाद जमीन में प्रत्यारोपित किया जाता है।
पॉली
बैग में जड़ जमा होने के कारण पुराने पौधे लगाने की सलाह नहीं दी जाती है यदि यह
पर्याप्त बड़ा नहीं है। छोटे पॉली बैग और 120 सेंटीमीटर ऊपर के
पुराने अंकुर वाले अंकुरों से बचना बेहतर है।
अगरवुड की खेती के लिए खाद और उर्वरक
की आवश्यकता
मिट्टी
को ढीला करने के लिए कोको पीट को मिट्टी में मिलाना पड़ता है। इसमें ऑक्सीजन युक्त
गुण अधिक होते हैं। ट्रिपल सुपरफॉस्फेट (टीएसपी) और डी अमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) से
मिट्टी में फॉस्फोरस मिलाया जाता है। ये अत्यधिक घुलनशील होते हैं और मिट्टी में
जल्दी घुल जाते हैं और पौधे को उपलब्ध फॉस्फेट छोड़ते हैं। गाय का गोबर एक जैविक
खाद के रूप में कार्य करता है और कीड़ों के हमले का विरोध करने के लिए इसमें 20 ग्राम फुनादान
मिलाया जाता है।